योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 97

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

इक्कीसवाँ अध्याय
संजय का दौत्य कर्म


प्यासा पानी पीता है और पानी पीने के कर्म से उसकी प्यास बुझ जाती है, इससे स्पष्ट है कि केवल ज्ञान से कर्म श्रेष्ठतर है। सृष्टि में कर्म ही प्रधान दीख पड़ता है। वायु, सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि और पृथ्वी सब कर्म करते हुए अपना-अपना धर्म-पालन कर रहे हैं। सारे आप्त पुरुषों, विद्वान ब्राह्मणों और क्षत्रियों की भी यही व्यवस्था है। फिर हे संजय! यह सब कुछ जानकर भी क्यों धृतराष्ट्र के पुत्रों का पक्ष लेकर उनकी वकालत करने आये हो। तुम जानते हो कि युधिष्ठिर वेद का ज्ञाता है, उसने राजसूय यज्ञ किया है, घोड़े और हाथी की सवारी करना और शस्त्र चलाना उसका काम है। अब तू ही बता, ऐसी दशा में वह कौन-सा उपाय है जिससे युधिष्ठिर धर्म से पतित न हो। परन्तु तुझे इस बात का स्मरण रखना चाहिए कि युधिष्ठिर राजपुत्र है। अब बता कि शास्त्र राजा के लिए क्या आज्ञा देते हैं। लड़ना या न लड़ना, उसका क्या धर्म है,

"शास्त्र में जो क्षत्रियों के धर्म लिखे है उनका विचार करके तुझे अपनी सम्मति देनी चाहिए। क्या क्षत्रिय का यह धर्म नहीं कि वह विद्या का प्रचार करे, धर्म की रक्षा करे, अपनी प्रजा का पालन करे। ऐसे नियम बनाये और इस तरह प्रबन्ध करे, जिसमें सब लोग वर्णाश्रम[1] में स्थिर रहें। क्या न्याय करना और अनीति और अत्याचार को दण्ड देना उसका धर्म नहीं है? यदि कोई पुरुष छल से या अधर्म से दूसरों का धन छीने तो बताओ उसके साथ राजा क्या बर्ताव करे? यदि ऐसी दशा में भी लड़ाई करना पाप है तो फिर ये शास्त्रादि किसलिए बनाए गए हैं? शास्त्र कहता है कि अधर्मी, पापी और दस्यु को शस्त्र से दण्ड देना क्षत्रिय का धर्म है और इसी से क्षत्रिय को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसलिए ऐसी अवस्था में लड़ाई करना कैसे पाप हो सकता है? आपको देखना चाहिए कि धृतराष्ट्र और उसके पुत्रों ने क्या-क्या किया। उन्होंने अधर्म से पाण्डवों का धन छीन लिया। याद रखो कि छिपकर चोरी करना या सामने चोरी करना दोनों ही समान पाप हैं। फिर बताओ दुर्योधन और चोर में क्या भेद रहा? इसके अतिरिक्त दुर्योधन तथा उसके दुष्ट साथी द्रौपदी को नग्न घसीट कर दरबार में ले गये और उसका अपमान किया। बड़े दुख की बात है कि उस समय दुर्योधन को किसी ने नहीं समझाया और न पूछा कि तुम यह क्या करते हो। संजय, तुम तो उस समय वहाँ थे, तुमने उस समय कर्ण को क्यों नहीं मना किया कि वह अर्जुन को ताना न दे। उस समय तो सारी सभा कायरों की तरह चुप रही और अब प्रत्येक पुरुष युधिष्ठिर को उपदेश देने आता है कि वह लड़ाई न करे।"

"फिर भी मेरी यही इच्छा है कि बिना लड़ाई के न्याय हो जाये। मैं स्वयं तैयार हूँ कि कौरवों के पास जाऊँ और उन्हें समझाऊँ। यदि वह मेरे समझाने से पाण्डवों को उनका अधिकार दे दें तो मैं अपने आपको कृतार्थ समझूँगा।"

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अपने-अपने धर्म

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः