योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
इक्कीसवाँ अध्याय
संजय का दौत्य कर्म
संजय तो अपने स्वामी की ओर से आसन्न युद्ध के हानि-लाभ पर तर्क-वितर्क करने आया था, इसलिए उसने युक्ति से अधिक काम लिया और युधिष्ठिर को संसार के नाशवान होने पर व्याख्यान देना आरम्भ कर दिया। आजकल के विभिन्न मत-मतान्तरों की भाँति वह युधिष्ठिर को उपदेश देने लगा, "हे राजन। संसार में काम सारी बुराइयों की जड़ है। जो निष्काम हैं वही परमात्मा को प्राप्त हो सकते हैं। काम ही हमको सांसारिक बन्धन में फँसाता है और बार-बार जन्म-मरण की श्रृंखला से निकलने नहीं देता। ज्ञानवान सांसारिक पदार्थों की परवाह नहीं करता और कर्मो के बन्धन से स्वतंत्र हो जाता है। तू ज्ञानवान होकर फिर क्यों ऐसे कर्म करता है जो निन्दनीय हैं। संसार के यावत सुख-दुःख क्षणिक हैं। जो पुरुष संसार के सुखों की इच्छा करता है वह उन सुखों के हेतु धर्म भी हार देता है। मेरी सम्मति में राजपाट के लिए लड़ाई करने से भिक्षा माँगकर पेट भरना अच्छा है, क्योंकि युद्ध में मनुष्य तरह-तरह के पाप करता है। इसलिए हे युधिष्ठिर! तू इस काम से अपनी आत्मा को भ्रष्ट मत कर। तू वेदों का ज्ञाता है और तूने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन भी किया है। यज्ञ भी किये हैं। तुझे उचित नहीं कि इस निन्दनीय कार्य से अपने विमल यश पर बट्टा लगाये। हे राजन! इस पाप से तेरी सारी तपस्या और आत्मा की पवित्रता नष्ट हो जाएगी। लड़ाई धार्मिक भाव के विरुद्ध है। तू क्रोध में आकर लड़ाई पर तत्पर हो गया है, परन्तु स्मरण रख, क्रोध सब पापों की जड़ है। प्रत्येक पुरुष को चाहिए कि वह क्रोध से बचे और अपनी इन्द्रियों को वश में रखे। हे राजन! अपने क्रोध को शान्त कर और अपनी आत्मा को उस महाहत्या से बचा। अपने पितामह, भाई, भतीजे तथा इष्ट मित्रों के वध से तुझे क्या मिलेगा? तेरी इस कार्रवाई से लाखों घर निर्वंश हो जायेंगे। घर-घर में रोना-पीटना मच जाएगा। लाखों स्त्रियाँ तेरा नाम लेकर रोयेंगी और तुझे कोसेंगी। इस विध्वंस के बाद यदि तुझे राजपाट मिल भी गया तो क्या वह सुखदायक होगा? क्या इस राजपाट से तू मृत्यु और बुढ़ापे के पंजे से बच जाएगा, फिर क्यों पाप से अपने हाथ रंगता है। वे तेरे शत्रु हैं जो तुझे युद्ध करने की राय देते हैं। यदि तेरे मंत्रदाता इस सम्मति को नहीं पलटते तो तू इस सिद्धान्त को छोड़ और राजपाट छोड़ वन का रास्ता ले। यदि यह नहीं हो सकता तो और कुछ कर, पर लड़ाई के पास न जा।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज