योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 8

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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लाला लाजपतराय-लेखक और साहित्यकार के रूप में


लाला जी का अध्ययन विशाल था। धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्नों पर उनका स्पष्ट चिन्तन था। उनका लेखन विशद, विविध विषयों से सम्पृक्त तथा बहुआयामी था, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

जीवनी-लेखन: स्वदेशी और अन्य देशीय महापुरुषों के जीवन-चरित्त-लेखन का उनका कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इटली के विख्यात देशभक्त मैजिनी और गैरीबाल्डी का जीवनी-लेखन तो विदेशी शासकों की दृष्टि में इतना आपत्तिजनक समझा गया कि इन दोनों पुस्तकों की जब्ती के आदेश प्रसारित किये गये। उनके द्वारा निम्न जीवन-चरित्र लिखे गये-

1. लाइफ एण्ड वर्क ऑफ पं. गुरुदत्त विद्यार्थी एम. ए.: इस ग्रन्थ का प्रकाशन 1891 में पं. गुरुदत्त के निधन के एक वर्ष पश्चात हुआ। यह लाला जी की प्रथम कृति है जिसे उन्होंने अपने मित्र तथा सहपाठी पं. गुरुदत्त के संस्मरणों के आधार पर लिखा था। विरजानन्द प्रेस, लाहौर से प्रकाशित यह ग्रन्थ अब प्रायः दुर्लभ हो चुका है। इसका उर्दू संस्करण 1992 में छपा था।

2. महर्षि दयानन्द सरस्वती और उनका काम: स्वामी दयानन्द का यह उर्दू जीवन-चरित्र लाला जी ने 1898 में लिखा। इसका हिन्दी अनुवाद गोपालदास देवगण शर्मा ने किया जो 1898 में ही ‘दुनिया के महापुरुषों की जीवन-ग्रन्थमाला’ के अन्तर्गत छपा। 2024 वि. सार्वदेशिक पत्र ने इसे अपने विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया।

3. योगिराज महात्मा श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र: उर्दू में इसका प्रकाशन 1900 में लाहौर से हुआ। इसका हिन्दी अनुवाद मास्टर हरिद्वारी सिंह बेदिल[1] ने किया, जिसे पं. शंकरदत्त शर्मा ने वैदिक पुस्तकालय, मुरादाबाद से प्रकाशित किया।

4. शिवाजी महाराज का जीवन-चरित: 1896 में उर्दू में प्रकाशित।

5. महात्मा ग्वीसेप मैजिनी का जीवन-चरित: यह भी मूलतः उर्दू में लिखा गया और 1896 में प्रकाशित हुआ। ब्रिटिश शासन ने इसे जब्त कर लिया। इसका हिन्दी अनुवाद श्री केशवप्रसाद सिंह ने किया जिसके कई संस्करण छपे। नेशनल बुक ट्रस्ट ने इसे 1967 में पुनः प्रकाशित किया।

6. गैरीबाल्डी: उर्दू में यह जीवन-चरित्र लिखा गया था। इसे भी अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। देश के स्वतंत्र हो जाने के पश्चात ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ ने इसे 1967 में पुनः प्रकाशित किया।

7. सम्राट अशोक: मूल ग्रन्थ उर्दू में था। इसका हिन्दी अनुवाद चौधरी एण्ड संस, बनारस ने 1933 में प्रकाशित किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर में अध्यापक

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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