योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
लाला लाजपतराय-लेखक और साहित्यकार के रूप में
जीवनी-लेखन: स्वदेशी और अन्य देशीय महापुरुषों के जीवन-चरित्त-लेखन का उनका कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इटली के विख्यात देशभक्त मैजिनी और गैरीबाल्डी का जीवनी-लेखन तो विदेशी शासकों की दृष्टि में इतना आपत्तिजनक समझा गया कि इन दोनों पुस्तकों की जब्ती के आदेश प्रसारित किये गये। उनके द्वारा निम्न जीवन-चरित्र लिखे गये- 1. लाइफ एण्ड वर्क ऑफ पं. गुरुदत्त विद्यार्थी एम. ए.: इस ग्रन्थ का प्रकाशन 1891 में पं. गुरुदत्त के निधन के एक वर्ष पश्चात हुआ। यह लाला जी की प्रथम कृति है जिसे उन्होंने अपने मित्र तथा सहपाठी पं. गुरुदत्त के संस्मरणों के आधार पर लिखा था। विरजानन्द प्रेस, लाहौर से प्रकाशित यह ग्रन्थ अब प्रायः दुर्लभ हो चुका है। इसका उर्दू संस्करण 1992 में छपा था। 2. महर्षि दयानन्द सरस्वती और उनका काम: स्वामी दयानन्द का यह उर्दू जीवन-चरित्र लाला जी ने 1898 में लिखा। इसका हिन्दी अनुवाद गोपालदास देवगण शर्मा ने किया जो 1898 में ही ‘दुनिया के महापुरुषों की जीवन-ग्रन्थमाला’ के अन्तर्गत छपा। 2024 वि. सार्वदेशिक पत्र ने इसे अपने विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया। 3. योगिराज महात्मा श्रीकृष्ण का जीवन-चरित्र: उर्दू में इसका प्रकाशन 1900 में लाहौर से हुआ। इसका हिन्दी अनुवाद मास्टर हरिद्वारी सिंह बेदिल[1] ने किया, जिसे पं. शंकरदत्त शर्मा ने वैदिक पुस्तकालय, मुरादाबाद से प्रकाशित किया। 4. शिवाजी महाराज का जीवन-चरित: 1896 में उर्दू में प्रकाशित। 5. महात्मा ग्वीसेप मैजिनी का जीवन-चरित: यह भी मूलतः उर्दू में लिखा गया और 1896 में प्रकाशित हुआ। ब्रिटिश शासन ने इसे जब्त कर लिया। इसका हिन्दी अनुवाद श्री केशवप्रसाद सिंह ने किया जिसके कई संस्करण छपे। नेशनल बुक ट्रस्ट ने इसे 1967 में पुनः प्रकाशित किया। 6. गैरीबाल्डी: उर्दू में यह जीवन-चरित्र लिखा गया था। इसे भी अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। देश के स्वतंत्र हो जाने के पश्चात ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ ने इसे 1967 में पुनः प्रकाशित किया। 7. सम्राट अशोक: मूल ग्रन्थ उर्दू में था। इसका हिन्दी अनुवाद चौधरी एण्ड संस, बनारस ने 1933 में प्रकाशित किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर में अध्यापक
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