योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 62

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पाँचवाँ अध्याय
गोकुल से वृन्दावन गमन


(2) ऐसे ही अरिष्ट नामी साँड से लड़ाई का वर्णन है।

(3) तीसरी लड़ाई केशी नामी घोड़े से हुई और कृष्ण ने उस पर जय प्राप्त की। फिर एक लड़ाई कालिय नाग से हुई।

कहते हैं कि यमुना के एक भाग में जहाँ एक झील-सी बन गई थी, कालिय नामक एक नाग रहता था जिसके भय से कोई उधर फटकने नहीं पाता था। कृष्ण एक दिन संयोग से वहाँ जा पहुँचे और कालिय ने उन्हें आ घेरा। कृष्ण उससे भिड़ गए और कुछ देर लड़ाई होने पर कालिय घायल होकर भाग निकला।[1]

पुराणों में इन्हीं घटनाओं को अमानुषी कहा है और वह इन पशुओं को दैत्य या राक्षस लिखते हैं, पर हमें तो इनमें कोई ऐसी असाधारण बात दिखाई नहीं देती हो इन घटनाओं को मनुष्यकृत मानने में तनिक भी बाधा डालती प्रतीत हों। गाँव में पशु चराने वाले लड़कों से आये दिन ऐसी घटनाएँ हुआ करती हैं। ग्रामीण बालकों की मंडली में कृष्ण और बलराम का नेता बन जाना कौन-सी बड़ी बात थी!

एक क्षत्रिय कुल का युवराज, जिसको विधाता ने राज्य करने को बनाया था पर जो काल की कुटिल गति से ग्रामीण चरवाहों की मंडली में आ गया, यदि वह एक छोटी-सी बस्ती में सबका शिरोमणि बन जाये तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं। यदि उस पुरी में उसका डंका बजने लगा तो यह कोई विचित्र बात नहीं थी। सारा वन उसके मीठे गान से गूँज उठा। सर्वत्र उसकी शूरता सराही जाने लगी। गोपों और ग्वालों के लड़कों पर कृष्ण और बलराम राज्य करने लगे यह दोनों राजकुमार जंगली बालक सेना के सेनापति बन बैठे। यह उनकी बनावटी लड़ाइयाँ आगे का परिचय देती थीं जब उन्हें सचमुच युद्ध की रचना करनी होगी। उनकी मनमोहिनी वाणी मानों उस वशीकरण के सदृश थी जिससे उन्होंने सारी सृष्टि को अपने वश में कर लिया था। जिससे मानों स्वर्ग का द्वार खुल गया और मोक्ष का मार्ग सुगम हो गया था। जिस बालक ने बचपन में बनैले पशुओं का वध करके मनुष्यों का उपकार करना सीखा हो वह वयप्राप्त होकर अत्याचारी दुष्टात्माओं को अत्याचार या अनुचित कार्य करने से कैसे न रोकता! वह अपने अन्तिम समय तक यही शिक्षा देता रहा कि दुष्टों को, चाहें वे पशु हो या मनुष्य, सदा दण्ड देते रहना चाहिए जिससे परमेश्वर की निरीह प्रजा उनके अत्याचारों से सुरक्षित रहे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसके दो अर्थ हो सकते हैं, एक यह कि यमुना के किसी भाग में ‘कालिय’ नामक कोई सर्प रहता था और कृष्ण ने उसे वहाँ से भगा दिया। दूसरा यह कि नाग जाति का कोई सरदार ‘कालिय’ नामक वहाँ रहता था जो गोपों को कुछ हानि पहुँचाता था। कृष्ण ने इस सरदार को लड़ाई में हराकर उस जंगल में से भगा दिया। मि. पॉल यहीं दूसरा अर्थ लगाते हैं क्योंकि पुराणों में कालिय को मनुष्य माना है और उसकी स्त्रियों की कान की बालियाँ तथा दूसरे आभूषणों का वर्णन किया है।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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