योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 56

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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तीसरा अध्याय
श्रीकृष्णचन्द्र का जन्म


कृष्णचंद्र रातों-रात गोकुल में पहुँचा दिये गए। उनकी जगह यशोदा की लड़की देवकी के साथ लाकर लिटा दी गई। कंस को दूसरे दिन जब ज्ञात हुआ कि रात को देवकी के बालक जन्मा है तो वह तत्काल उठ खड़ा हुआ और सौर में चला गया। देवकी उसे देख रोने और विलाप करने लगी, उस दुष्ट ने एक न मानी और उस लड़की को[1] उठाकर पृथ्वी पर दे मारा।

दुष्ट कंस! पाप ने तेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी। सारी आर्य-मर्यादा को तूने मिट्टी में मिला दिया। इस अज्ञानी बालिका के वध से तूने अपने को महापाप का भागी बना लिया और यह न विचारा कि मृत्यु से कोई बच नहीं सकता। जिस राज्य के लिए तू ऐसे पाप कर रहा है वह क्षणिक है, पर ऐसे घोर पाप से तेरी आत्मा घोर अधोगति को प्राप्त होगी।

पाप से बढ़कर अंधा करने वाली दूसरी शक्ति जगत में नहीं है। एक पाप को छिपाने के लिए मनुष्य को अनेक पाप करने पड़ते हैं। पाप बड़ा बली है। जो लोग पाप पर विजयी नहीं हो सकते, उनको सदा खटका बना रहता है। रस्सियाँ साँप बनकर उनको डसने दौड़ती हैं। सारा संसार उनको शत्रु दीख पड़ता है। जितना कोई सीधा तथा निष्कपट होता है उतना ही वह[2] उससे भय खाता है। अज्ञानी बालकों को भी यह अपना शत्रु समझकर उनके वह स्वयं उसी के बोझ से दबकर मर मिटता है।

पुराण का लेखक आगे लिखता है कि जब लड़की को उठाकर भूमि पर फेंक दिया तो वह तत्काल देवी का रूप धारण कर वायु में अन्तर्धान हो गई और कंस खड़ा ही रह गया,[3] पर उसे लगा कि या तो मेरे साथ धोखा किया गया या मैंने इस बालिका को वृथा मारा, अगमवाणी तो बालक के विषय में थी। चाहे कुछ हो पर उसने यादव वंश के सारे बालकों के वध की आज्ञा दे दी।[4] ढूँढ़-ढूँढ़कर राजकुमार मारे गये। बहुतेरे यादव-वृन्द देश छोड़कर चल दिए और बहुत दिनों तक यह मार-पीट जारी रही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो उसके साथ शैय्या पर लेटी हुई थी।
  2. पापी
  3. हजरत ईसा के जन्म के विषय में भी ऐसी ही कथा प्रसिद्ध है कि हिरोदेशो (जो उस समय वहाँ का अनुशासक था) ने इसी तरह तथा इसी भय से अनेक बालक मरवा डाले थे।
  4. शाहनामा में ‘फरेदू’ के जन्म के विषय में भी ऐसी ही कथा लिखी है।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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