योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
गोकुल आजकल एक बड़ा कस्बा है, जो बल्लभाचारी सम्प्रदाय[1] की जन्मभूमि होने से इस दशा को जो प्राप्त हुआ है। इस सम्प्रदाय की ओट में ऐसा व्यभिचार होता है जिसे लेखनी लिखते हुए लजाती है।[2] (8) मथुरा से 6 मील ऊपर तीन ओर प्यारी यमुना से घिरा हुआ द्वीपाकर वृन्दावन का कस्बा बसा हुआ है जहाँ कृष्ण ने बचपन के कई वर्ष व्यतीत किये। संस्कृत में वृन्दा, तुलसी के पेड़ को कहते हैं इसलिए यह अनुमान होता है कि इस वन में कभी तुलसी के पेड़ बहुत रहे होंगे जिससे इसका नाम वृन्दावन पड़ गया। अस्तु, इस नाम का चाहे कुछ और ही कारण क्यों न हो, परन्तु अब तो यह नाम ऐसा प्रसिद्ध तथा चिरस्थायी हो गया कि जब तक कृष्ण का नाम जीवित रहेगा तब तक वह नाम हिन्दुओं के लिए पूजनीय बना रहेगा। तीन ओर यमुना की लहरें और उसके किनारे-किनारे सुन्दर तथा ऊँचे मन्दिरों की पंक्ति, यह एक ऐसा दृश्य है जिसे देखकर प्रत्येक मनुष्य प्रकृति और मनुष्यकृत शोभा के मेल से अपने चित्त को हर्षित कर सकता है। वृन्दावन में सं. 1880 में 32 घाट और लगभग 1000 मन्दिर थे। वृन्दावन वैष्णव सम्प्रदाय का मुख्य स्थान तथा राधावल्लभियों[3] की जन्मभूमि है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोस्वामी वल्लभाचार्य प्रवर्तित पुष्टि मार्ग
- ↑ द्रष्टव्य-महाराज लाइबल केस का विवरण
- ↑ निम्बार्क सम्प्रदाय, जिसमें कृष्ण की अपेक्षा राधा को अधिक महत्त्व दिया गया है।
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