योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 48

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि


(7) यमुना-तट पर दो छोटे ग्राम है जिनमें से एक का नाम अब तक ‘गोकुल’ और दूसरे का ‘महावन’ है। किंवदंती है कि कृष्ण महाराज को पालन-पोषण के लिए जिस नंद गोप के हवाले किया गया था वह यहीं का रहने वाला था। अब कृष्ण संबंधी जो मकान गोकुल में दिखाये जाते हैं वे महावन में हैं जो वर्तमान गोकुल से कुछ दूरी पर बसा हुआ है। जिस घाट पर जन्म की रात्रि के समय कृष्णचन्द्र नंद के हवाले किये गये उसे ‘उत्तर घाट’ कहते हैं। इनके अतिरिक्त वे स्थान भी दिखाये जाते हैं जहाँ गोकुल में रहकर कृष्ण के जीवन-काल की दूसरी घटनाएँ हुई हैं। गोकुल और महावन दोनों स्थान पवित्र गिने जाते हैं, जिनमें से गोकुल नदी के तट पर है और उसमें बड़े-बड़े मन्दिर बने हुए हैं। महावन के निकट शाहजहाँ के समय तक बहुत बड़ा वन था जहाँ शाहजहाँ प्रायः शिकार खेलने आया करता था।

गोकुल आजकल एक बड़ा कस्बा है, जो बल्लभाचारी सम्प्रदाय[1] की जन्मभूमि होने से इस दशा को जो प्राप्त हुआ है। इस सम्प्रदाय की ओट में ऐसा व्यभिचार होता है जिसे लेखनी लिखते हुए लजाती है।[2]

(8) मथुरा से 6 मील ऊपर तीन ओर प्यारी यमुना से घिरा हुआ द्वीपाकर वृन्दावन का कस्बा बसा हुआ है जहाँ कृष्ण ने बचपन के कई वर्ष व्यतीत किये। संस्कृत में वृन्दा, तुलसी के पेड़ को कहते हैं इसलिए यह अनुमान होता है कि इस वन में कभी तुलसी के पेड़ बहुत रहे होंगे जिससे इसका नाम वृन्दावन पड़ गया। अस्तु, इस नाम का चाहे कुछ और ही कारण क्यों न हो, परन्तु अब तो यह नाम ऐसा प्रसिद्ध तथा चिरस्थायी हो गया कि जब तक कृष्ण का नाम जीवित रहेगा तब तक वह नाम हिन्दुओं के लिए पूजनीय बना रहेगा।

तीन ओर यमुना की लहरें और उसके किनारे-किनारे सुन्दर तथा ऊँचे मन्दिरों की पंक्ति, यह एक ऐसा दृश्य है जिसे देखकर प्रत्येक मनुष्य प्रकृति और मनुष्यकृत शोभा के मेल से अपने चित्त को हर्षित कर सकता है। वृन्दावन में सं. 1880 में 32 घाट और लगभग 1000 मन्दिर थे। वृन्दावन वैष्णव सम्प्रदाय का मुख्य स्थान तथा राधावल्लभियों[3] की जन्मभूमि है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोस्वामी वल्लभाचार्य प्रवर्तित पुष्टि मार्ग
  2. द्रष्टव्य-महाराज लाइबल केस का विवरण
  3. निम्बार्क सम्प्रदाय, जिसमें कृष्ण की अपेक्षा राधा को अधिक महत्त्व दिया गया है।

संबंधित लेख

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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