योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 46

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि


इसके पश्चात फिर चीनी यात्री फाहियान के भ्रमण वृत्तांत में मथुरा का वर्णन आता है। फाहियान 5वीं शताब्दी के आदि में यहाँ आया। उसने अपने भ्रमण वृत्तांत में मथुरा का वर्णन किया। वह लिखता है कि उसकी राजधानी का भी यही नाम था। उसके कथनानुसार मथुरा में उस समय बौद्ध मत का विशेष प्रचार था। सब छोटे-बड़े उसी मत के अनुगामी हो रहे थे। शहर में उस समय 200 विहार[1] थे जिनमें 3 हजार बौद्ध भिक्षुक रहते थे और सात स्तूप[2] थे। फाहियान के 200 वर्ष पश्चात एक और चीनी यात्री हुआनलिस्टांग[3] यहाँ आया। वह भी मथुरा के विषय में लिखता है कि मथुरा नगर का घेरा उस समय 4 कोस का था। यद्यपि विहारों की संख्या 200 ही थी पर उनमें रहने वाले भिक्षुकों की गिनती घटकर अब 2000 हो गई थी। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणें ने भी 5 मन्दिर बनवा लिए थे। स्तूपों की गिनती उस समय बहुत बढ़ गई थी।

हुआनलिस्टांग के समय में बौद्ध तथा पौराणिक धर्म में परस्पर विरोध फैल रहा था और वे एक-दूसरे को दबाने की चेष्टा कर रहे थे जिसका परिणाम यह हुआ कि महाराज शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट की युक्तियों से बौद्ध धर्म परास्त हुआ तथा पौराणिक मत की सारे भारतवर्ष में पुनः पताका फहरने लगी। महमूद गजनबी के आक्रमणों के समय भारत का दक्षिण प्रांत पौराणिक मत का अनुयायी हो गया था और मथुरा हिन्दुओं का तीर्थस्थान बन चुका था। महमूद गजनवी ने मथुरा को सन 1017 में लूटा और मन्दिरों का विध्वंस किया। वहाँ के सबसे बड़े मन्दिर के विषय में उसने अपने नायब को पत्र में लिखा, ʺयदि कोई मनुष्य ऐसा मकान बनाना चाहे तो बिना एक करोड़ दीनार के नहीं बनवा सकता तथा बड़े चतुर कारीगर भी उसे 200 वर्ष से कम में नहीं तैयार कर सकते।ʺ इतना लिखकर ये हजरत अहंकारपूर्वक लिखते हैं, ʺमेरे हुक्म से तमाम मन्दिरों को जलाकर जमीन में मिला दिया गया है।ʺ 20 दिन तक शहर को लूटा गया और महमूद को तीन करोड़ का द्रव्य हाथ आया।

‘तारीख यमीनी' का लेखक लिखता है कि इस मन्दिर की प्रशंसा न लिखने से हो सकती है और न चित्र खींचने से। इस दुष्ट के आक्रमण के बाद मुसलमानों के राज्य में मथुरा नगरी फिर कभी पूरी दीप्तिमान अवस्था को प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि यहाँ के लोगों को सदा यही भय लगा रहा कि कहीं फिर मुसलमानों को इसे लूटने का विचार पैदा न हो जाय। पर मुसलमानों का इतिहास स्वयं इस बात की साक्षी दे रहा है कि उनके समय में मथुरा अनेक बार धार्मिक पक्षपात का शिकार बन चुका है। ‘तारीख दाऊदी’ का लेखक लिखता है कि सिंकदर लोधी ने मथुरा के सब मन्दिरों को नष्ट कर दिया और मन्दिरों से सरायों और मुसलमानी पाठशालाओं का काम लिया। मूर्तियों को कसाइयों को सौंप दिया जिनसे वह माँस तोला करें और मथुरा के हिन्दुओं को शिर और दाढ़ी मुँड़ाने या किसी अन्य प्रकार से पिण्ड-तर्पण कराने को भी मना कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्थात बौद्धों के धार्मिक मन्दिर
  2. मेमोरियल मीनार
  3. हेनसांग

संबंधित लेख

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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