योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
हुआनलिस्टांग के समय में बौद्ध तथा पौराणिक धर्म में परस्पर विरोध फैल रहा था और वे एक-दूसरे को दबाने की चेष्टा कर रहे थे जिसका परिणाम यह हुआ कि महाराज शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट की युक्तियों से बौद्ध धर्म परास्त हुआ तथा पौराणिक मत की सारे भारतवर्ष में पुनः पताका फहरने लगी। महमूद गजनबी के आक्रमणों के समय भारत का दक्षिण प्रांत पौराणिक मत का अनुयायी हो गया था और मथुरा हिन्दुओं का तीर्थस्थान बन चुका था। महमूद गजनवी ने मथुरा को सन 1017 में लूटा और मन्दिरों का विध्वंस किया। वहाँ के सबसे बड़े मन्दिर के विषय में उसने अपने नायब को पत्र में लिखा, ʺयदि कोई मनुष्य ऐसा मकान बनाना चाहे तो बिना एक करोड़ दीनार के नहीं बनवा सकता तथा बड़े चतुर कारीगर भी उसे 200 वर्ष से कम में नहीं तैयार कर सकते।ʺ इतना लिखकर ये हजरत अहंकारपूर्वक लिखते हैं, ʺमेरे हुक्म से तमाम मन्दिरों को जलाकर जमीन में मिला दिया गया है।ʺ 20 दिन तक शहर को लूटा गया और महमूद को तीन करोड़ का द्रव्य हाथ आया। ‘तारीख यमीनी' का लेखक लिखता है कि इस मन्दिर की प्रशंसा न लिखने से हो सकती है और न चित्र खींचने से। इस दुष्ट के आक्रमण के बाद मुसलमानों के राज्य में मथुरा नगरी फिर कभी पूरी दीप्तिमान अवस्था को प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि यहाँ के लोगों को सदा यही भय लगा रहा कि कहीं फिर मुसलमानों को इसे लूटने का विचार पैदा न हो जाय। पर मुसलमानों का इतिहास स्वयं इस बात की साक्षी दे रहा है कि उनके समय में मथुरा अनेक बार धार्मिक पक्षपात का शिकार बन चुका है। ‘तारीख दाऊदी’ का लेखक लिखता है कि सिंकदर लोधी ने मथुरा के सब मन्दिरों को नष्ट कर दिया और मन्दिरों से सरायों और मुसलमानी पाठशालाओं का काम लिया। मूर्तियों को कसाइयों को सौंप दिया जिनसे वह माँस तोला करें और मथुरा के हिन्दुओं को शिर और दाढ़ी मुँड़ाने या किसी अन्य प्रकार से पिण्ड-तर्पण कराने को भी मना कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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