योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 41

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

7. पुराणों की प्राचीनता


हर एक मनुष्य को पूरी स्वाधीनता हो कि जो चाहे खाए, पीए और जो चाहे सो करे। वह यही चाहते हैं कि केवल शासन में उन्हें भाग मिल जाए और बड़े-बड़े पद भी उन्हें मिलने लगें। सरकार उनसे सलाह लेने लग जाये, टैक्स लगाने और उठाने में उनकी पूछ हो और उन्हें हर प्रकार के धार्मिक या सामाजिक बंधन से छुटकारा मिल जाय। हिन्दू युवकों की एक मंडली आजकल इसी सिद्धान्त को मानने वाली हो रही है। परन्तु दूसरी ओर जिस मंडली को अध्यात्मिक उन्नति का ध्यान है, जिसको धार्मिक शिक्षा या धार्मिक दर्शन से घृणा नहीं, वे वैराग्य, वेदान्त, योग और संन्यास को ही अपना मंतव्य समझते हैं। उनके विचार में यह संसार स्वप्नवत और सांसारिक सुख सब घृणित वस्तु है। उन्हें सांसारिक उन्नति की परवाह नहीं, वह अपनी धुन में एकदम ब्रह्म या एकदम परमयोगी बनने के अभिलाषी दीख पड़ते हैं। उनकी समझ में वे लोग पागल हैं जो आत्मोन्नति को छोड़कर भौतिक उन्नति के लिए तत्पर हो रहे हैं।

आजकल नवशिक्षित मंडली साधारणतः इन्हीं दो में से एक मत की अनुयायी हो रही है। परन्तु इनके अतिरिक्त बीच का एक और दल है, जिसे उपर्युक्त दोनों मंडलियाँ तुच्छ दृष्टि से देखती है। यह दल चाहता है कि हिन्दू अपने प्राचीन शास्त्रोक्त धर्म पर स्थिर होकर उसी धार्मिक शिक्षा के अनुसार उन्नति करें। यह शिक्षित मंडली जैसे एक ओर जाति को नवीन वेदान्त तथा वैराग्य से बचाने का प्रयत्न करती है वैसे ही दूसरी ओर यूरोप के भौतिक[1] दर्शन से बचने की चेतावनी भी देती है, परन्तु मनुष्य में यह दोष है कि वह सदा अति की ओर झुकता है, जिसे संस्कृत में अति दोष कहते हैं। हमारी जाति में यह दोष इस समय प्रबल हो रहा है और इसी से हमारे नवशिक्षित युवकगण अपने आचरण को मध्यम श्रेणी में नहीं रख सकते। ऐसे मनुष्यों के लिए श्रीकृष्ण की जीवनी तथा उनका दर्शन बड़ा उपयोगी और लाभकारी होगा। परन्तु खेद है कि गीता और महाभारत को पढ़कर लोग कृष्ण की शिक्षा के भाव को समझने में गलती करते हैं। उससे वैराग्य, योग तथा नवीन वेदान्त की सिद्धि करके लोक-परलोक को लात मार, बाल-बच्चों को छोड़ वस्त्र रँगा लेते हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Material

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः