योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
7. पुराणों की प्राचीनता
आजकल नवशिक्षित मंडली साधारणतः इन्हीं दो में से एक मत की अनुयायी हो रही है। परन्तु इनके अतिरिक्त बीच का एक और दल है, जिसे उपर्युक्त दोनों मंडलियाँ तुच्छ दृष्टि से देखती है। यह दल चाहता है कि हिन्दू अपने प्राचीन शास्त्रोक्त धर्म पर स्थिर होकर उसी धार्मिक शिक्षा के अनुसार उन्नति करें। यह शिक्षित मंडली जैसे एक ओर जाति को नवीन वेदान्त तथा वैराग्य से बचाने का प्रयत्न करती है वैसे ही दूसरी ओर यूरोप के भौतिक[1] दर्शन से बचने की चेतावनी भी देती है, परन्तु मनुष्य में यह दोष है कि वह सदा अति की ओर झुकता है, जिसे संस्कृत में अति दोष कहते हैं। हमारी जाति में यह दोष इस समय प्रबल हो रहा है और इसी से हमारे नवशिक्षित युवकगण अपने आचरण को मध्यम श्रेणी में नहीं रख सकते। ऐसे मनुष्यों के लिए श्रीकृष्ण की जीवनी तथा उनका दर्शन बड़ा उपयोगी और लाभकारी होगा। परन्तु खेद है कि गीता और महाभारत को पढ़कर लोग कृष्ण की शिक्षा के भाव को समझने में गलती करते हैं। उससे वैराग्य, योग तथा नवीन वेदान्त की सिद्धि करके लोक-परलोक को लात मार, बाल-बच्चों को छोड़ वस्त्र रँगा लेते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Material
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