योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
4. श्रीकृष्ण
श्रीराम का धार्मिक जीवन यद्यपि एक आदर्श स्वरूप हैं, किन्तु इनके और श्रीकृष्ण के धार्मिक जीवन में बहुत अन्तर है। श्रीकृष्ण जैसे सच्चे प्रेम, रसिकता और वीरता में आदर्श माने जाते हैं वैसे ही सच्चे धर्मोपदेशक भी। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब वैदिक धर्म का बेड़ा मिथ्या, वैराग्य और दर्शन के भँवर में घूमता हुआ एक ओर बहा जा रहा था। धर्म अपने यथोचित स्थान से गिरा दीख पड़ता था, कभी मिथ्या, वैराग्य और कभी शुष्क भ्रांतिमय दर्शन का पलड़ा भारी हो जाता था। इनको ऐसे समय में धर्मोपदेश करना पड़ा, अतएव इनका जीवन धर्मोपदेशक का एक उच्च आदर्श था और इसलिए हम देखते है कि भारतवर्ष में कदाचित एक भी पुरुष ऐसा नहीं, जिस पर श्रीकृष्ण की शिक्षा या उपदेश का कुछ असर न पड़ा हो-सभी श्रीकृष्ण के नाम की दुहाई देते हैं और उनके वचन को प्रमाण मानते हैं। हमारा यह कथन अत्युक्ति नहीं है कि भारत का धार्मिक आकाश इस समय भी श्रीकृष्ण के धर्मोपदेशों से प्रकाशमय दीख रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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