योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 25

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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4. श्रीकृष्ण


कवियों के आत्यन्तिक प्रेम की उमंग से उत्पन्न मानसिक भावों की चंचलता और विश्वास की निर्बलता ने जो अपमान और अन्याय श्रीकृष्ण महाराज के साथ किया है उसका दूसरा दृष्टान्त किसी भाषा में नहीं दिखाई देता। यद्यपि श्री तुलसीदासजी ने अपनी भक्ति की तरंग में श्रीरामचन्द्रजी पर भी वैसे ही आक्षेप किये हैं, परन्तु उन्होंने उनको उस दरजे तक नहीं पहुँचाया है जहाँ तक पौराणिक साहित्य वालों ने श्रीकृष्ण को पहुँचा दिया है। इसका कारण यह जान पड़ता है कि श्रीरामचंद्र को श्रीकृष्ण के समान उपदेशक की उपाधि नहीं दी गई। श्रीराम को उनकी विमाता कैकेयी ने अपनी ईर्ष्या और द्वेष से वर बना दिया। इसलिए कवियों ने भी पितृभक्ति और भ्रातृस्नेह का मुकुट उनके माथे पर रख दिया। परन्तु यह मुकुट उसके मस्तक पर अधिक शोभायमान होता है जो प्रत्येक प्रकार से धार्मिक जीवन का आदर्श हो। अर्थात शेष वस्त्र भी ऐसे उपयुक्त होने चाहिए जिससे मुकुट का सौंदर्य भली प्रकार से प्रकाशित हो।

श्रीराम का धार्मिक जीवन यद्यपि एक आदर्श स्वरूप हैं, किन्तु इनके और श्रीकृष्ण के धार्मिक जीवन में बहुत अन्तर है। श्रीकृष्ण जैसे सच्चे प्रेम, रसिकता और वीरता में आदर्श माने जाते हैं वैसे ही सच्चे धर्मोपदेशक भी। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब वैदिक धर्म का बेड़ा मिथ्या, वैराग्य और दर्शन के भँवर में घूमता हुआ एक ओर बहा जा रहा था। धर्म अपने यथोचित स्थान से गिरा दीख पड़ता था, कभी मिथ्या, वैराग्य और कभी शुष्क भ्रांतिमय दर्शन का पलड़ा भारी हो जाता था। इनको ऐसे समय में धर्मोपदेश करना पड़ा, अतएव इनका जीवन धर्मोपदेशक का एक उच्च आदर्श था और इसलिए हम देखते है कि भारतवर्ष में कदाचित एक भी पुरुष ऐसा नहीं, जिस पर श्रीकृष्ण की शिक्षा या उपदेश का कुछ असर न पड़ा हो-सभी श्रीकृष्ण के नाम की दुहाई देते हैं और उनके वचन को प्रमाण मानते हैं। हमारा यह कथन अत्युक्ति नहीं है कि भारत का धार्मिक आकाश इस समय भी श्रीकृष्ण के धर्मोपदेशों से प्रकाशमय दीख रहा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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