योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 24

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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3. अवतारों की यथार्थता


आर्यावर्त में सबसे पहले बौद्ध धर्म वालों की शिक्षा से लोगों को परमात्मा के अस्तित्व में महान शंका उत्पन्न हुई और इस पवित्र भूमि के रहने वाले परमात्मा की उपासना के उच्चासन से गिरकर मानव-पूजन के अंधकार रूपी पाश में आ फँसे। उपासना की यह परिपाटी जनसाधारण में ऐसी प्रचलित हुई कि वैदिक धर्मोपदेशकों ने भी बौद्ध धर्मानुयायी बनना अपने लिए हितावह विचारा। ब्राह्मणों ने महात्मा बुद्ध के स्थान में श्रीरामचन्द्र और श्रीकृष्ण को देवता बनाकर अवतारों की पदवी दी। धीरे-धीरे इस भाव ने यहाँ तक जोर पकड़ा कि कुछ काल पश्चात पौराणिक भाषा के समस्त ग्रन्थों में इसी की चर्चा दिखाई देने लगी और चारों ओर अवतार प्रकट होने लगे। कवियों ने जो महान पुरुषों के जीवन लिखने में अपने उच्च विचारों को प्रकट किया था खगोल विद्या पढ़कर तथा सब प्राकृतिक दृश्यों को देखकर काव्यबद्ध करने में जो समय व्यतीत किया था, उन कविजनों के परिश्रम और संस्कृत विद्या को पौराणिक समय के धार्मिक ग्रन्थ रचयिताओं ने समयानुकूल परिवर्तित कर दिया।

बस फिर क्या था, विद्या तथा धर्म के तत्त्ववेत्ताओं ने इस परिपाटी की ऐसी चाल चला दी कि लोक-परलोक के प्रायः सभी सिद्धान्त चाहे अच्छे हों यो बुरे परमेश्वर कृत कार्यों में सम्मिलित कर लिए गये और जनसाधारण को कारण और कर्ता में भेदाभेद का विचार न रहा। महान पुरषों के जीवन चरित्र इस साँचे में ढाले गये, कि दूसरी जाति वाले उनको मिथ्या, बनावटी और अपवित्र समझने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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