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2. वैदिक महापुरुष
उन्नीसवीं शताब्दी के इस अंग्रेजी विद्वान ने जो भाव इस पुस्तक में प्रकट किये हैं, वे लाखों वर्ष पूर्व आर्यावर्त में आर्य ऋषियों द्वारा उनकी पुस्तकों में प्रकाशित हो चुके हैं- संस्कृत भाषा के प्राचीन ग्रन्थों में ‘अग्नि’ शब्द का प्रयोग[1] विद्वान ऋषि, मुनि, आप्त, पुरुषों और महात्माओं के लिए हुआ है। यह भाव ऐसा सर्वव्यापक है मानों प्रत्येक भाषा और प्रत्येक देशवासी इसी रँग में रँगा है। संस्कृत भाषा में देव या देवता परमात्मा के लिए आता है। परन्तु महान पुरुषों के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है।
- अंग्रेजी में गॉड के अर्थ परमेश्वर के है; परन्तु उसी ‘गॉड’ शब्द का बहुवचन ‘गॉडस’ देवताओं के लिए आता है। मुसलमान मतावलम्बी हजरत मुहम्मद को नूरे इलाही कहते हैं।
- उधर ईसाई हजरत मसीह को ‘खुदा का बेटा’ मानते हैं।
- बौद्वमत वाले महात्मा बुद्ध को ‘लार्ड’ कहकर पुकारते हैं।
- इसी प्रकार आर्यगण श्रीराम और श्रीकृष्ण को अवतार कहते हैं। हिन्दुओं में आप्त पुरुष, ऋषि, मुनि और विद्वानों के आदर और पूजन की परिपाटी वैदिक समय से चली आती है। वेदमंत्रों में स्थान-स्थान पर आज्ञा दी गई है कि तुम धर्मात्मा और आप्त पुरुषों का सत्कार करो उनकी पूजा को अपना परम धर्म समझो।
- आर्य लोगों के नित्य कर्म में भी विद्वानों और आप्त पुरुषों के पूजन को एक मुख्य कर्तव्य कहा है और हर एक यज्ञ और उत्सव पर इसका करना आवश्यक समझा है।
- ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद और दूसरे आर्य ग्रन्थों में इस विषय की पूरी-पूरी विवेचना की गई है। पर किसी वैदिक ग्रन्थ में किसी महात्मा या आप्त पुरुष को परमात्मा का पद नहीं दिया है।
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