योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय
यह है लाला जी के आर्यसमाज में प्रवेश की कथा। लाला साँईदास आर्यसमाज के प्रति इतने अधिक समर्पित थे कि वे होनहार नवयुवकों को इस संस्था में प्रविष्ट करने के लिए सदा तत्पर रहते थे। स्वामी श्रद्धानन्द[4] को आर्यसमाज में लाने का श्रेय भी उन्हें ही है। 30 अक्टूबर, 1883 को जब अजमेर में ऋषि दयानन्द का देहान्त हो गया तो 9 नवम्बर, 1883 को लाहौर आर्यसमाज की ओर से एक शोकसभा का आयोजन किया गया। इस सभा के अन्त में यह निश्चय हुआ कि स्वामी जी की स्मृति में एक ऐसे महाविद्यालय की स्थापना की जाये, जिसमें वैदिक साहित्य, संस्कृत तथा हिन्दी की उच्च शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेजी और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान में भी छात्रों को दक्षता प्राप्त कराई जाये। 1886 में जब इस शिक्षण संस्था की स्थापना हुई तो आर्यसमाज के अन्य नेताओं के साथ लाला लाजपतराय का भी इसके संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा तथा वे कालान्तर में डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर के महान स्तम्भ बने। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ डी. ए. वी. कॉलेज के संस्थापकों में प्रमुख
- ↑ आर्यसमाज लाहौर के प्रथम मंत्री
- ↑ लाला लाजपतराय की आत्मकथा - नवयुग, ग्रंथमाला, लाहौर से प्रकाशित, 1932
- ↑ तत्कालीन लाला मुंशीराम
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