सम्पादकीय
प्रस्तृत संस्करण: लाला लाजपतराय की अमर कृति को एक बार पुनः हिन्दी पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व जब यह अनुवाद हुआ था तो अनुवाद की भाषा में परिष्कार का अभाव था। हमारा प्रयास रहा है कि अनुवाद की भाषा को आद्यन्त परिष्कृत परिमार्जित किया जाये। ऐसा करने से अनुवाद में प्रांज्जलता, प्रासादिकता तथा सहजता आ गई है। प्रकाशक ने मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लाला लाजपतराय द्वारा रचित महापुरुषों के कतिपय जीवन चरित्रों को संशोधित तथा सुसंस्कृत रूप में पुनः हिन्दी पाठकों के समक्ष लाने का पुरुषार्थ किया है, एतदर्थ वे हम सबके साधुवाद के पात्र हैं। आशा है भारतीय धर्म, संस्कृति तथा जीवनदर्शन के महान प्रेरणास्त्रोत योगिराज कृष्ण के इस जीवनचरित्र को पढ़कर हम सबमें कर्तव्यबोध जागृत होगा।
रत्नाकर, नन्दन वन, जोधपुर -भवानीलाल भारतीय
कार्तिक अमावस्या (दीपोत्सव)
2054 वि.
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