योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 141

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा


श्लोक 15 में बतलाते हैं कि यह कर्म किस तरह जाना जाता है।

कर्मब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्य नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।15।।

अर्थ- कर्म वेद से जाना जाता है और वेद उस अनादि परमेश्वर के बनाये हुए हैं।

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममोभूत्वा युद्धस्व विगतज्वरः।।30।।

अर्थ- समस्त कर्मो को परमात्मा के अधीन करके, इसी पर अपने सब विचारों को निर्भर रखते हुए आशा और आत्माभिमान को छोड़कर तथा इस विचार के संताप से मुक्ति पाकर तू युद्ध करने पर कटिबद्ध हो। चौथे अध्याय में भी इसी तरह कर्म और अकर्म, उचित और अनुचित कर्मो का तत्त्व वर्णन किया है।

पाँचवें अध्याय के श्लोक में फिर यही उपदेश आता है-

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि संगं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न से पापेनः पद्मपत्रभिवाम्भासा।।10।।

अर्थ- जो सब कर्मो को ब्रह्मपरायण करके बिना मोह के कर्म करता है वह पाप में नहीं फँसता, जैसे कि कमल के पत्ते पर पानी का कोई चिह्न नहीं होता।

कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संगंत्यक्त्वात्मशुद्धये।।11।।

अर्थ- मोह को छोड़कर शरीर से, मन से, बुद्धि से और इन्द्रियों से भी योगी अपनी आत्म-शुद्ध के लिए कर्म करते हैं। छठे अध्याय के पहले श्लोक में तो बिल्कुल साफ लिख दिया है।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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