योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 140

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा


इसलिए कृष्ण महाराज का वचन है-

योगस्थः कुरु कर्म्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्धयसिद्धयोःसमोभूत्वा समत्वंयोग उच्यते।।48।।

अर्थ- हे धनंजय[1] ईश्वरीय इच्छा में योग करता हुआ तू राग का त्याग कर। सिद्धि और असिद्धि को एक-सा जानकर तू कर्मो को कर, क्योंकि इसी समता का नाम योग हैं।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।47।।

अर्थ- न तुझे कर्मो से मतलब है न उनके फलों से। अस्तु, कर्मो के फल को अपना उद्देश्य मत बना और न अकर्म की अवस्था से दिल लगा।[2] हे अर्जुन, सुख-दुख, हानि-लाभ और हार-जीत को एक-सा समझकर लड़ाई के लिए कमर बाँध, क्योंकि उसी से तू पाप से बच सकता है।

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापामवाप्स्यसि।।38।।

तीसरे अध्याय के 8वें श्लोक में फिर यही बात दोहराई गई है।

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्मज्यायोह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिध्येदकर्मण:।।8।।

अर्थ- अस्तु, तू सत्य कर्म कर क्योंकि कर्म करना अकर्म से कहीं उत्तम है। बिना कर्म किये तो शरीर-यात्रा भी नहीं हो सकती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्जुन का ही एक अन्य नाम है।
  2. अर्थात न दिल में यही ठान ले कि कर्म नहीं करना चाहिए।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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