योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा
अर्थ- जो मनुष्य इन्द्रियों को वश में करके राग-द्वेष रहित हो इन्द्रियों के विषयों[1] में आचरण करता है और इसलिए शुद्ध अन्तःकरण रखता है वही प्रसाद अर्थात आनन्द को प्राप्त हो सकता है। ।।64।। प्रश्न- स्थिर बुद्धि होने का क्या फल है?
अर्थ- मुनि लोग बुद्धि योग को प्राप्त कर कर्मों के फलों को यहाँ ही त्याग देते हैं और जन्म के बंधनों से मुक्त होकर उस पद को प्राप्त करते हैं जिसमें कोई व्याधि नहीं, अर्थात अमृतमय मोक्ष को प्राप्त करते हैं। ।।51।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इन्द्रियों के विषय में आचरण करने से तात्पर्य यह है कि इन्द्रियों से वह काम लेता है जिस काम को करने के लिए प्रकृति ने उनको बनाया है, जैसे आँख से देखना, कान से सुनना, नाक से सूँघना इत्यादि।
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