योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 135

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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चौंतीसवां अध्याय
क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे?


अस्तु, हमारी राय में भगवद्गीता में कृष्ण का उपदेश उतना ही है जितना कि सब अध्यायों में पाया जाता है। शेष उक्तियाँ दूसरे विद्वानों द्वारा बढ़ाई गई हैं। इस विवाद से यह भी परिणाम निकलता है कि गीता एक ही लेखक की लिखी हुई नहीं है और न उन वेदव्यास कृत हो सकती है जो वेदांत दर्शन के बनाने वाले कहे जाते हैं। यह कदापि संभव नहीं कि व्यास जैसा दर्शन का ज्ञाता पुरुष एक ही विचार को बार-बार दुहराता जैसा उसने गीता में दोहराया है। दर्शनकारों की श्रेष्ठता यही है कि उन्होंने बड़ी-से-बड़ी और कठिन-से-कठिन युक्तियों को सरल और संक्षिप्त शब्दों में वर्णबद्ध कर दिया। बड़े-बड़े मोतियों को बारीक धागे में पिरोकर रख दिया। परन्तु गीता का क्रम, गीता की लेखन-प्रणाली और काव्य-शैली इसके विरुद्ध है। कोई-कोई यूरोपियन विद्वान तो इससे यह परिणाम निकालते हैं कि गीता दार्शनिक समय से पहले की बनी हुई है, अर्थात उस समय की है, जिस समय दर्शनों की भाँति क्रमबद्धता और वैज्ञानिक युक्तियाँ आर्यो में जारी नहीं हुई थीं। पर मेरी समझ में यह विचार ठीक नहीं हैं क्योंकि गीता के लेख से यह प्रमाणित करने की चेष्टा की गई है कि समस्त दर्शनों का अभिप्राय मनुष्य को एक ही तत्त्व तक पहुँचाता है। गीता से हमको यही शिक्षा मिलती है कि ज्ञान से, कर्म से, ध्यान से, भक्ति से और योग से किस तरह मुक्ति मिलती है। गीता में भिन्न-भिन्न साधनों के परस्पर संबंध प्रकट कर उनका अंतिम परिणाम एक ही बतलाया गया है अर्थात ईश्वर-प्राप्ति।

मेरे इस वाद-विवाद से आप यह परिणाम न निकालें कि मैं अपनी सम्मति में गीता का छिद्रान्वेषण करता हूँ। मैं तो अपने को उन विद्वानों की चरण-रज के तुल्य भी नहीं समझता जिन्होंने गीता बनाई। मैं तो शायद कई जन्मों में उनकी युक्तियों के मर्म को भी नहीं समझ सकता हूँ। मैं उनकी विद्वत्ता और ज्ञान के सम्मुख प्रसन्नतापूर्वक सिर झुकाता हूँ। परन्तु फिर भी यह कहने से नहीं रुक सकता कि गीता मुझे एक ही विद्वान की कृति नहीं मालूम होती। गीता रचने वालों का मतलब दर्शनशास्त्र की रचना से नहीं था अपितु मनुष्य मात्र के नित्यप्रति के व्यवहार के लिए एक ऐसे उपदेश का संग्रह करने का था जिसमें दर्शनों का निचोड़ इस भाँति आ जावे जिससे उसका समझना कठिन न हो। निदान इस निचोड़ को उन्होंने जिस उत्तमता से संग्रह किया उससे उनकी अद्वितीय बुद्धिमत्ता का ही परिचय मिलता है।

यदि ग्लेडस्टोन और टिण्डल जैसे विद्वान अपने धर्मग्रन्थ इंजील को ईश्वरीय वचन और मसीह को ईश्वर का पुत्र बल्कि स्वयं उसको ईश्वर मान सकते है तो इसमें क्या आश्चर्य है कि गीता के भिन्न-भिन्न लेखकों में से किसी ने कृष्ण महाराज को अवतार की पदवी दे दी। चाहे वह इसी अभिप्राय से हो कि जो कुछ वे उपदेश करना चाहते थे उसका आदर हो और वह सर्वथा प्रामाणिक वचन माना जाये। चाहे वह वास्तव में कृष्ण महाराज को अवतार ही मानते थे अथवा नहीं। क्या यह आश्चर्य नहीं है कि गीता के अतिरिक्त और किसी प्राचीन पुस्तक या आर्य ग्रन्थ में न तो साधारणतः अवतारों का वर्णन है और न कृष्ण महाराज के अवतार होने का, क्योंकि पुराणों के विषय में तो हम भूमिका में प्रमाणित कर ही चुके हैं कि वे वर्तमान समय के कुछ ही पहले के बने हुए हैं। इसलिए केवल उनके आधार पर नहीं कहा जा सकता कि प्राचीन आर्य लोग परमेश्वर को अवतार मानते थे या कृष्ण महाराज को ऐसा मानते थे।

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संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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