योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 127

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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बत्तीसवाँ अध्याय
युधिष्ठिर का राज्याभिषेक


कृष्ण का सारा जीवन बताता है कि यह वचन-चातुरी ही उनका सबसे जबरदस्त और उपयुक्त हथियार था जो अचूक था। अपने समय के दर्शन और वर्ण-धर्म के विषय में वह निपुण थे और उनकी व्यवस्था कभी ख़ाली न जाती थी। वैराग्य के दर्शन को वह ऐसा विवेचित करते थे कि उनके सामने झूठे त्याग के विचार भागते से दिखाई देते थे। वैदिक धर्म के पृथक-पृथक भावों को वे समन्वित करते थे और एक श्रेणीबद्ध दृश्य तैयार कर देते थे। प्राचीन शास्त्रों, ऋषियों और मुनियों की मर्यादा में वे ऐसे निपुण थे कि जहाँ उन्होंने प्रमाण देने आरम्भ किये, वहाँ प्रतिपक्षी के द्वारा उन्हें मानने के सिवाय और कोई चारा ही नहीं रहता था। अतः इस अवसर पर भी कृष्ण का उपदेश काम कर गया और युधिष्ठिर ने राजपाट छोड़कर त्यागी बनने के विचार को चित्त से दूर कर दिया; अन्त में रोते हुए सम्बन्धियों ने भाई, भतीजों, निकटवर्ती प्रियजनों के मृतक-संस्कार किये और फिर हस्तिनापुर को रवाना हुए। हस्तिनापुर में पहुँचकर युधिष्ठिर को गद्दी पर बैठाया गया। युधिष्ठिर गद्दी पर तो बैठ गया परन्तु उदास रहने लगा। फिर कृष्ण ने उसको अश्वमेध यज्ञ करने के लिए तैयार किया और उस यज्ञ की तैयारियों में पाण्डवों को लगाकर स्वयं मातृभूमि द्वारिका चले गये।

नोट- युधिष्ठिर के राजसिंहासन पर बैठने के बाद और कृष्ण के द्वारिका जाने से पहले महाभारत में एक और घटना का उल्लेख है, जिसकी सत्यता में संदेह है। यह कथा प्रचलित है कि जब युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठे तो भीष्म पितामह अभी जीवित थे। यह मालूम नहीं कि वे कुरुक्षेत्र से हस्तिनापुर आ गये थे या वहाँ ही किसी स्थान पर थे, परन्तु किंवदन्ती इस प्रकार है कि युधिष्ठिर की राजगद्दी के पश्चात कृष्ण युधिष्ठिर और सारे पाण्डवों को महाराज भीष्म के पास ले गये और प्रार्थना पर महाराज भीष्म ने युधिष्ठिर को वह उपदेश किया जो महाभारत के शान्ति और अनुशासन पर्व में लिखा है। यह उपदेश लम्बा और जटिल है। ऐसे-ऐसे कठिन विषय इसमें भरे हुए हैं जिससे इस बात को मानने में संकोच होता है कि मरने के समय इस प्रकार के उपदेश महात्मा भीष्म ने दिये हों। तो भी किसी ऐसे महान पुरुष से मृत्यु के समय उपदेश लेना साधारण बात है। अतः इस घटना का सत्य होना भी असम्भव नहीं है। यदि ऐसा हुआ भी हो तो भी महाराज भीष्म के असल उपदेशों पर बाद में इतनी टिप्पणियाँ चढ़ीं और उनमें इतनी मिलावट हुई जिससे यह निर्णय करना असम्भव है कि इसमें से कितना उपदेश महाराज भीष्म का है और कितना पीछे से मिलाने वालों के विचारों का अंश है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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