योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 119

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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उन्तीसवाँ अध्याय
महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व


अर्जुन को यह बतलाया गया कि सिंधु के राजा जयद्रथ ने अभिमन्यु का सिर काटा है। अर्जुन ने उसी समय यह प्रतिज्ञा की कि कल सायंकाल से पहले मैं जयद्रथ को मारकर अपने पुत्र का बदला लूँगा, नहीं तो स्वयं जीते जी आग में जलकर भस्म हो जाऊँगा। कृष्ण को अर्जुन की इस प्रतिज्ञा से बड़ी चिन्ता हुई। सोचा कि अर्जुन की इस प्रतिज्ञा की खबर अभी दुर्योधन तक पहुँच जाएगी और वह ऐसा प्रबंध करेगा जिससे कि जयद्रथ अर्जुन के सामने ही न आने पावे और दूर ही दूर रहे। उसके लिए यह कठिन भी नहीं होगा कि कल सायंकाल तक किसी-न-किसी प्रकार जयद्रथ को बचा सके। यदि कल सांयकाल तक जयद्रथ नहीं मारा गया तो बस अर्जुन का अंत है। उन्होंने अपने रथवान को आज्ञा दी कि कल मेरा रथ पूर्ण रीति से सुसज्जित रहे, क्योंकि अर्जुन को बचाने के लिए यदि आवश्यकता हुई तो मैं स्वयं ऐसी रीति व्यवहार में लाऊँगा जिससे जयद्रथ मारा जावे और अर्जुन बचा रहे।

दूसरे दिन जब युद्ध आरम्भ हुआ तो दुर्योधन ने अपनी सेना को इस तरह से जमाया जिससे जयद्रथ परले किनारे पर खड़ा रहा और सारी तैयारी उसके बचाव के लिए की गई क्योंकि कौरवों के लिए जयद्रथ का सायंकाल तक जीवित रहना जय प्राप्त करने के समान था। पाण्डवों की सेना में से यदि अर्जुन निकल जाता तो फिर दुर्योधन के जीतने में क्या शंका थी। अगले दिन कृष्ण ने सारथी-कला के ऐसे गुण दिखाये और युद्ध के बीचोबीच व्यूह को चीरकर इस रीति से अर्जुन को जयद्रथ के सामने लाकर खड़ा किया जिससे जयद्रथ के लिए लड़ने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं रहा। ऐसा क्यों न होता जबकि अर्जुन जैसे महाबली योद्धा और कृष्ण जैसे सारथी हों। कृष्ण तो सारथी-विद्या का कौशल दिखा सकते थे परन्तु उनकी कला किस काम आती यदि अर्जुन उपस्थित वीरों से अपने आपको न बचाता, क्योंकि सारे रास्ते भयंकर युद्ध होता रहा। कौरव सेना के सब बड़े-बड़े योद्धा बारी-बारी लड़ते। कभी भिन्न-भिन्न और कभी कई लोग एकत्र होकर अर्जुन से युद्ध करते रहे, परन्तु वीर अर्जुन सबसे युद्ध करता हुआ किसी को मारता, किसी से बचता, किसी को अपनी सेना के दूसरे योद्धाओं को सौंपता, अपनी जान को हथेली पर लिए बाण वर्षा, निशानेबाजी और युद्ध के करतब दिखलाता हुआ जयद्रथ के सामने जा पहुँचा और उसको युद्ध करने पर बाध्य किया। युद्ध में उसका सिर काटकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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