योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 116

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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अट्ठाईसवाँ अध्याय
भीष्म की पराजय


यदि कोई भीष्म पर वार नहीं करता तो मैं खुद भीष्म को मार गिराऊँगा। कृष्ण की यह दशा देखकर अर्जुन कुछ लज्जित हुआ और मन में सोचने लगा कि कृष्ण ने तो लड़ाई में शस्त्र न चलाने का प्रण किया था। यदि क्रोधवश ये अपना प्रण भंग कर बैठे तो इसका पाप मेरे सिर होगा। यह सोचकर वह भी कृष्ण के पीछे हो गया। कुछ दूर जाने पर उनको पकड़ लिया और सशपथ कहने लगा, "आप चिन्ता न करें, मैं भीष्म को मारूँगा।" इस सारी योजना से कृष्ण का जो अभिप्राय था वह सिद्ध हुआ। अर्जुन से यह बात सुनके कृष्ण ठंडे हो गये और फिर रथ पर आ बैठे। अब अर्जुन ने बड़े उत्साह से युद्ध आरम्भ किया। यहाँ तक कि लड़ाई का समां बदल दिया और हजारों आदमियों को मिट्टी में मिला दिया। पर फिर भी जब तक भीष्म जीवित थे तब तक लड़ाई का बंद होना असंभव था, इसलिए पाण्डवों ने पूरा बल उनको पराजित करने की ओर लगाया।

उधर दुर्योधन और उसके भाइयों ने पूर्ण रीति से भीष्म की रक्षा की और उनकी सहायता का प्रबंध किया। यहाँ तक कि सात दिन इसी दाँवपेंच में समाप्त हो गये। नित्यप्रति हजारों सैनिकों का वारा-न्यारा होता था परन्तु सात दिन तक भीष्म रणक्षेत्र से हटे, न अर्जुन को किसी प्रकार का कष्ट पहुँचा। सातवें दिन अर्जुन और शिखण्डी ने मिलकर भीष्म को अपने बाणों से पिरो[1] दिया। यहाँ तक कि वृद्ध, बाल जितेन्द्रिय, बाल ब्रह्मचारी योद्धाओं के योद्धा युद्ध के योग्य न रहा और गिर गया। जब भीष्म के गिरने का समाचार सैन्य दल में फैल गया तो द्रोण की आज्ञा से लड़ाई बन्द हो गई और दोनों ओर के योद्धा मान-मर्यादा के विचार से उनके सिरहाने एकत्रित हुए। भीष्म ने तकिये की इच्छा प्रकट की जिस पर दुर्योधन आदि कौरवों ने भाँति-भाँति के बहुमूल्य और नरम तकिये मँगाये, जिनको भीष्म ने स्वीकार नहीं किया और अर्जुन की ओर ध्यान देकर कहा कि मेरी समयानुकूल अवस्था के अनुसार मेरे लिए तकिये बना दे। अर्जुन ने ऐसी योग्यता से तीन बाण भूमि पर चलाये जिससे इन तीन बाणों से भीष्म के सिर के लिए तकिया बन गया। बाण-शैय्या के लिए बाणों का ही तकिया उपयुक्त था। भीष्म बहुत प्रसन्न हुए और अर्जुन को आर्शीवाद दिया।

भीष्म की मृत्यु के संबंध में यह कहावत प्रचलित है कि जिस समय वह धरती पर गिरे वहाँ अनगिनत बाण थे और वह इसी तरह बाणों पर पड़े हुए कई दिनों तक जीवित रहे, मानो उनकी शैय्या बाणों की बनी हुई थी। इसीलिए अर्जुन ने बाणों का सिरहाना उनके लिए बनाया जिससे वे अत्यन्त प्रसन्न हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बींध

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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