योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
सत्ताईसवाँ अध्याय
महाभारत का युद्ध
"न तुझमें यह शक्ति है, कि तू इनको मार सके और न उनमें यह शक्ति है कि वह तुझे मार सकें। आत्मा पर न तो लोहे की मार है और न अग्नि की। मरने और मारने वाला तो यह शरीर है जो आत्मा का वस्त्र है। यह शरीर नाशवान है और कर्म करने के लिए मनुष्य को दिया गया है। परमात्मा ने जो धर्म जीवात्मा के लिए नियत किया है उसे पूरा करने के लिए उसकी योग्यतानुसार उसे वह शरीर प्रदान किया जाता है। जीवात्मा का यह काम नहीं कि इस शरीर के रक्षार्थ अपना धर्म-कर्म छोड़ दे और मेरे-तेरे के भ्रम में पड़कर यथार्थ धर्म का परित्याग करे। जीवात्मा का यही धर्म है कि शरीर से वही काम ले जिसके लिए यह दिया गया है। यह शरीर धर्म के अनुकूल कर्म करने के लिए दिया गया है न कि अपनी इच्छानुसार काम करने के लिए। जो लोग अपनी इच्छा को प्रधान मानकर काम करते हैं वे कर्म के फेर में फँसे रहकर यथार्थ धर्म से दूर रह दुख-सुख के बन्धन में फँसे रहते हैं। परन्तु जो जीवात्मा अपनी इच्छा का परित्याग कर शरीर को निष्काम कर्म में लगाते हैं वे सच्चाई को पाकर शारीरिक प्रयोजन और उसके बन्धनों से स्वतंत्र हो जाते हैं और मोक्ष को प्राप्त होते हैं। अतएव तुझे उचित है कि क्षात्र धर्म का पालन करता हुआ मेरे और तेरे, अथवा इसके और उसके कुविचार को छोड़ दे और अपने धर्म पर स्थिर रह। ऐसा न करने से तू घोर पाप का भागी बनेगा और नरक में पड़ेगा।" नोट- पाठक! यह कथन उस उपदेश का सार है जो कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया था और जिसके प्रभाववश अर्जुन फिर लड़ने को बद्धपरिकर हो गया था। साधारणतः यह विचारा जाता है कि गीता का समस्त उपदेश कृष्ण ने अर्जुन को युद्धक्षेत्र में किया था। हमको इसे मानने में संकोच है, पर यदि यह सत्य है तब भी गीता का सार वही है जो हमने ऊपर कहा है। जब तक लड़ाई होती रही तब तक कृष्ण बराबर अर्जुन के साथ रहे यद्यपि उन्होंने स्वयं शस्त्र नहीं चलाये, पर इसमें संदेह नहीं कि कृष्ण की उपस्थिति से पाण्डवों को बड़ी सहायता मिलती रही। सारी लड़ाई में वे पाण्डवों के मन्त्रदाता बने रहे और स्थान-स्थान पर इनकी सेना को प्रोत्साहित करते रहे। इस युद्ध का सविस्तार वर्णन करना इस पुस्तक की सीमा के बाहर है, अतः हम केवल उन घटनाओं का ही उल्लेख करेंगे जिनसे कृष्णचन्द्र का संबंध है या जिससे कृष्ण के चरित्र पर कुछ प्रकाश पड़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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