ये सब मेरैहि खोज परी।
मै तो स्याम मिली नहि नीकै, आजु रही निसि संग हरी।।
जुवती हैं सब दई सँवारी, घर बनहूँ मै रहति भरी।
कैसै धौ यह साध मिटैगी, कहूँ मिले जौ एक घरी।।
प्रगट करौ तौ वनत नही कछु, लोक-सकुच-कुल-लाज मरी।
ते परगट अबही इन देखे, 'सूरज' प्रभु ब्रजराज हरी।।2047।।