याद पड़ रहा है-आये थे -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


याद पड़ रहा है आये थे, भोजन करने मोहन श्याम।
परस रही थी मैं उनको अति रुचिकर भोज्य-पदार्थ तमाम॥
यह मेरा भ्रम था, माधव तो खेल रहे कालिन्दी-कूल।
आये क्यों न अभी क्या क्रीड़ा में वे गये सभी कुछ भूल॥
भूखे होंगे, कैसे उन्हें बुलाऊँ अब मैं यहाँ तुरंत ?।
हृदय विदीर्ण हो रहा, कैसे हो इस मेरे दुखका अन्त॥
बना-बनाया भोजन क्या यह नहिं आयेगा प्रियके काम ?।
क्या वे इसे धन्य करनेको नहीं पधारेंगे सुखधाम ?॥
माधव सुन हँस रहे प्रियाका यह मधु प्रेम-विलाप-विलास।
बोले-’राधे ! चेत करो, देखो, मैं रहा तुम्हारे पास॥
छोड़ दिया क्यों तुमने वस्तु परसना, होकर व्यर्थ उदास ?।
भूखा मैं यदि रह जाऊँगा, होगी तुहें भयानक त्रास’॥
यों कह, मृदु हँस, माधवने पकड़ा राधाका कोमल हाथ।
चौंकी, बोली-’हाय ! हो गयी मुझसे बड़ी भूल यह नाथ !॥
कैसी मैं अधमा हूँ, जो मैं भ्रमसे गयी जिमाना भूल।
व्यर्थ मान बैठी, प्रिय ! तुम हो खेल रहे कालिन्दी-कूल’॥
लगी प्रेमसे पुनः परसने विविध स्वादयुत वस्तु ललाम।
भोग लगाने लगे, मधुर लीला पर हँसकर प्रियतम श्याम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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