यह सुनि गिरी धरनि झुकि माता।
कहा अक्रूर ठगौरी लाई, लिये जात डोउ भ्राता।।
बिरध समय की हरत लकुटिया, पाप पुन्य डर नाही।
कछू नफा है तुमकौ यामै, सोचौ धौ मन माही।।
नाम सुनत अक्रूर तुम्हारौ, कूर भए हौ आइ।
'सूर' नंद धरनी अति व्याकुल, ऐसैहिं रैनि बिहाइ।।2980।।