यह ससि सीतल काहैं कहियत।
मीनकेत अंबुज आनंदित, तातै ता हित लहियत।।
एक कलक मिट्यौ नहिं अजहूँ, मनौ दूसरौ चहियत।
याही दुख तै घटत बढ़त नित, निसा नीद रिपु गहियत।।
बिरहिनि अरु कमलिनि त्रासत कहुँ, अपकारी रथ नहियत।
'सूरदास' प्रभु मधुवन गौने, तौ इतनौ दुख सहियत।। 3352।।