यमुना-तट-संनिकट कुंज में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग जंगला - ताल कहरवा


यमुना-तट-संनिकट कुंजमें मृदुल शिलापर मोहन श्याम।
बैठे रूप-छटा बिखराते, बजा रहे वंशी अभिराम॥
सजी-सजायी चली जा रही गोपी ले करमें मटकी।
जल भरने, सुन मुरली-ध्वनि, वह रही राह में ही अटकी॥
खिंची लोह-चुंबक-सी मुनि-मन-मोहन-मुख-माधुर्य निहार।
जा बैठी विमुग्ध, विस्मित-सी, भूल भवन-तन-मन-संसार॥
भरा अमित आमोद हृदय में, उपजा मन मधुमय अभिलाष।
बैठी रहूँ सदा यों ही, बस, मुग्ध हु‌ई मोहन के पास॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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