विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दअष्टम अध्यायअन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्। योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो पुरुष अन्तकाल में अर्थात् मन के निरोध और विलयकाल में मेरा ही स्मरण करते हुए शरीर के सम्बन्ध को छोड़ अलग हो जाता है, वह ‘मद्भावम्’-साक्षात् मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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