यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 381

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

अष्टम अध्याय

अधियज्ञः कथं कोऽन्न देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः।।2।।


हे मधुसूदन! यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस शरीर में कैसे है? सिद्ध है कि अधियज्ञ अर्थात् यज्ञ का अधिष्ठाता कोई ऐसा परुष है, जो मनुष्य शरीर के आधारवाला है। समाहित चित्तवाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में आप किस प्रकार जानने में आते हैं? इन सातों प्रश्नों का क्रम से निर्णय देने के लिये योगेश्वर श्रीकृष्ण बोले-

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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