विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायकामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः। “वह तत्त्वदर्शी महात्मा अथवा परमात्मा ही सब कुछ हैं।”-लोग ऐसा समझ नहीं पाते; क्योंकि भोगों की कामनाओं द्वारा लोगों के विवेक का अपहरण कर लिया गया है, इसलिये वे अपनी प्रकृति अर्थात् जन्म-जन्मान्तरों से अर्जित संस्कारों के स्वभाव से प्रेरित होकर मुझ परमात्मा से भिन्न अन्य देवताओं और उनके लिये प्रचलित नियमों की शरण लेते हैं। यहाँ ‘अन्य देवता’ का प्रसंग पहली बार आया है।
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज