विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायबहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते। अभ्यास करते-करते बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में, प्राप्तिवाले जन्म में साक्षात्कार को प्राप्त हुआ ज्ञानी ‘सब कुछ वासुदेव ही है’-इस प्रकार मेरे को भजता है। वह महात्मा अतिदुर्लभ है। वह किसी वासुदेव की प्रतिमा नहीं गढ़ वाता बल्कि अपने भीतर ही उस परमदेव का वास पाता है। उसी ज्ञानी महात्मा को श्रीकृष्ण तत्त्वदर्शी भी कहते हैं। इन्हीं महापुरुषों से बाहर समाज में कल्याण सम्भव है। इस प्रकार प्रत्यक्ष तत्त्वदर्शी महापुरुष श्रीकृष्ण के शब्दों में अतिदुर्लभ हैं। जब श्रेय और प्रेय (मुक्ति और भोग) दोनों ही भगवान से मिलते हैं, तब तो सभी को एकमात्र भगवान का भजन करना चाहिये, फिर भी लोग उन्हें नहीं भजते। क्यों? श्रीकृष्ण के ही शब्दों में-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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