विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायतेषां ज्ञानी नित्युक्त एकभक्तिर्विशिष्यते। अर्जुन! उनमें भी नित्य मुझमें एकीभाव में स्थित अनन्य भक्तिवाला ज्ञानी विशिष्ट है; क्योंकि साक्षात्मकार के सहित जाननेवाला ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी भी मुझे अत्यन्त प्रिय है। वह ज्ञानी मेरा ही स्वरूप है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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