यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 352

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

सप्तम अध्याय


भागवत के द्वादश स्कन्ध के आठवें और नौवें अध्याय के अनुसार शौनकादि ऋषियों ने सूत जी से पूछा कि मार्कण्डेय जी ने महाप्रलय में वट के पत्ते पर भगवान् बालमुकुन्द के दर्शन किय थे; किन्तु वे तो हमारे ही वंश के थे, हमसे कुछ ही समय पूर्व हुए थे। उनके जन्म के बाद न कोई प्रलय हुआ और न सृष्टि ही डूबी। सब कुछ यथावत् है, तब उन्होनें कैसा प्रलय देखा?

सूत जी ने बताया कि मार्कण्डेय जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर नर-नारायण ने उन्हें दर्शन दिया। मार्कण्डेय जी ने कहा कि मैं आपकी वह माया देखना चाहता हूँ, जिससे प्रेरित होकर यह आत्मा अनन्त योनियों में भ्रमण करता है। भगवान ने स्वीकार किया। एक दिन की जब मुनि अपने आश्रम में भगवान के चिन्तन में तन्मय हो रहे थे, तब उन्हें दिखायी पड़ा कि चारों ओर से समुद्र उमड़कर उनके ऊपर आ रहा है। उसमें ‘मगर’ छलाँगे लगा रहे थे। उनकी चपेट में ऋषि मार्कण्डेय भी आ रहे थे। वे इधर-उधर बचने के लिये भाग रहे थे। आकाश, सूर्य, पृथ्वी, चन्द्रमा, स्वर्ग, ज्योतिर्मण्डल सभी उस समुद्र में डूब गये। इतने में मार्कण्डेय जी को बरगद का पेड़ और उसके पत्ते पर एक शिशु दिखायी दिया। श्वास के सार्थज्ञ मार्कण्डेय जी भी उस शिशु के उदर में चले गये और अपना आश्रम, सूर्यमण्डल सहित सृष्टि को जीवि पाया और पुनः श्वास के साथ उस शिशु के उदर से वे बाहर आ गये। नेत्र खुलने पर मार्कण्डेय जी ने अपने को उसी आश्रम में अपने ही आसन पर पाया।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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