विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दसप्तम अध्यायएतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय। अर्जुन! ऐसा समझ कि सम्पूर्ण भूत ‘एतद्योनीनि’-इन महाप्रकृतियों से, परा और अपरा प्रकृतियों से ही उत्पनन होने वाले हैं। यही दोनों एकमात्र योनि हैं। मैं सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति तथा प्रलय रूप हूँ अर्थात् मूल कारण हूँ। जगत् की उत्पत्ति मुझसे है और (प्रलय) विलय में भी मुझमें हैं। जब तक प्रकृति विद्यमान है, तब तक मैं ही उसकी उत्पत्ति हूँ और जब कोई महापुरुष प्रकृति का पार लेता है, तब मैं ही महाप्रयल भी हूँ, जो अनुभव में आता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज