यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 347

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

सप्तम अध्याय

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ।।2।।

मैं तेरे लिये इस विज्ञानसहित ज्ञान को सम्पूर्णता से कहूँगा। पूर्तिकाल में यज्ञ जिसकी सृष्टि करता है, उस अमृत-तत्त्व की प्राप्ति के साथ मिलनेवाली जानकारी का नाम ज्ञान है। परमतत्त्व परमात्मा की प्रत्यक्ष जानकारी का नाम ज्ञान है। महापुरुष को एक साथ सर्वत्र कार्य करने की जो क्षमता मिलती है, वह विज्ञान है। कैसे वह प्रभु एक साथ सबके हृदय में कार्य करता है? किस प्रकार वह उठाता, बैठाता और प्रकृति के द्वन्द्व से निकालकर स्वरूप तक की दूरी तय करा लेता है? उसकी इस कार्य-प्रणाली का नाम विज्ञान है। इस विज्ञानसहित ज्ञान को सम्पूर्णता से कहूँगा, जिसे जानकर (सुनकर नहीं) संसार में और कुछ भी जानने योग्य नहीं रह जायेगा। जाननेवालों की संख्या बहुत कम है-


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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