यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 33

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

प्रथम अध्याय

यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ।।46।।

यदि मुझ शस्त्ररहित, सामना न करने वाले को शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मारें तो उनका वह मारना भी मेरे लिये अतिकल्याणकारी होगा। इतिहास तो कहेगा कि अर्जुन समझदार था, जिसने अपनी बलि देकर युद्ध बचा लिया। लोग प्राणों की आहुति दे डालते हैं कि भोले-भाले मासूम बच्चे सुखी रहें, कुल तो बचा रहे। मनुष्य विदेश चला जाय, वैभवपूर्ण प्रासाद में रहे; किन्तु दो दिन बाद उसे अपनी छोड़ी हुई झोपड़ी याद आने लगती है। मोह इतना प्रबल होता है। इसीलिये अर्जुन कहता है कि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ न प्रतिकार करने वाले को रण में मार दें, तब भी वह मेरे लिये अतिकल्याणकारी होगा ताकि लड़के तो सुखी रहें।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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