विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायसर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः। जो पुरुष अनेकता से परे उपर्युक्त एकत्व भाव से मुझ परमात्मा को भजता है, वह योगी सब प्रकार के कार्यों में बरतता हुआ भी मेरे में ही बरतता है; क्योंकि मुझे छोड़कर उसके लिये कोई बचा भी तो नहीं। उसका तो सब मिट गया, इसलिये वह अब उठता, बैठता जो कुछ भी करता है, मेरे संकल्प से करता है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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