विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायउत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन। हे जनार्दन! नष्ट हुए कुलधर्म वाले मनुष्यों का अनन्तकाल तक नरक में वास होता है, ऐसा हमने सुना है। केवल कुलधर्म ही नहीं नष्ट होता, बल्कि शाश्वत-सनातन धर्म नष्ट हो जाता है। जब धर्म ही नष्ट हो गया, तब ऐसे पुरुष का अनन्तकाल तक नरक में निवास होता है, ऐसा हमने सुना है। देखा नहीं, सुना है। अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। अहो! शोक है कि हमलोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हुए हैं। राज्य और सुख के लोभ से अपने कुल को मारने के लिये उद्यत हैं। अभी अर्जुन अपने को कम ज्ञाता नहीं समझता। आरम्भ में प्रत्येक साधक इसी प्रकार बोलता है। महात्मा बुद्ध का कथन है कि मनुष्य जब अधूरी जानकारी रखता है तो अपने को महान् ज्ञानी समझता है और जब आधे से आधे की जानकारी हासिल करने लगता है तो अपने को महान् मूर्ख समझता है। ठीक इसी प्रकार अर्जुन भी अपने को ज्ञानी ही समझता है। वह श्रीकृष्ण को ही समझाता है कि इस पाप से परमकल्याण हो-ऐसी बात भी नहीं, केवल राज्य और सुख के लोभ में पड़कर हम लोग कुलनाश करने को उद्यत हुए हैं-महान् भूल कर रहे हैं। हम भी भूल कर रहे हैं-ऐसी बात नहीं, आप भी भूल कर रहे हैं। एक धक्का श्रीकृष्ण को भी दिया। अन्त में अर्जुन अपना निर्णय देता है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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