विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायसंकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। वर्णसंकर कुलघातियों और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है। लुप्त हुई पिण्डोदक क्रिया वाले इनके पितर लोग भी गिर जाते हैं। वर्तमान नष्ट हो जाता है, अतीत के पितर गिर जाते हैं और भविष्य वाले भी गिरेंगे। इतना ही नहीं, दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः। इन वर्णसंकरकारण दोषों से कुल और कुलघातियों के सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं। अर्जुन मानता था कि कुलधर्म सनातन है, कुलधर्म ही शाश्वत है। किन्तु श्रीकृष्ण ने इसका खण्डन किया और आगे बताया कि आत्मा ही सनातन-शाश्वत धर्म है। वास्तविक सनातन-धर्म को जानने से पहले मनुष्य धर्म के नाम पर किसी-न-किसी रूढ़ि को जानता है। ठीक इसी प्रकार अर्जुन भी जानता है, जो श्रीकृष्ण के शब्दों में एक रूढ़ि है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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