विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायनात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। दुःखों का नाश करनेवाला यह योग उचित आहार-विहार, कर्मों में उपयुक्त चेष्टा और संतुलित शयन-जागरण करनेवाले का ही पूर्ण होता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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