विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दषष्ठम अध्यायतत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः। शरीर, गर्दन और सि को सीधा, अचल-स्थिर करके (जैसे कोई पटरी खड़ी कर दी गयी हो, इस प्रकार सीधा) दृढ़ होकर बैठ जाय और अपनी नासिका के अग्रभाग को देखकर (नासिका की नोंक देखते रहने का निर्देश नहीं है बल्कि सीधे बैठने पर नाक के सामने जहाँ दृष्टि पड़ती है, वहाँ दृष्टि रहे। दाहिने-बायें देखते रहने की चंचलता न रहे) अन्य दिशाओं को न देखता हुआ स्थिर होकर बैठे और- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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