विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायपश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। हे आचार्य! अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपद-पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस भारी सेना को देखिये। शाश्वत अचल पद में आस्था रखने वाला दृढ़ मन ही ‘धृष्टद्युम्न’ है। यही पुण्यमयी प्रवृत्तियों का नायक है। ‘साधन कठिन न मन कहुँ टेका।’[1]- साधन कठिन नहीं, मन की दृढ़ता कठिन होनी चाहिये। अब देखें सेना का विस्तार -
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रामचरितमानस, 7/44/3
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