यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 3

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

प्रथम अध्याय

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।3।।

हे आचार्य! अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपद-पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डुपुत्रों की इस भारी सेना को देखिये।

शाश्वत अचल पद में आस्था रखने वाला दृढ़ मन ही ‘धृष्टद्युम्न’ है। यही पुण्यमयी प्रवृत्तियों का नायक है। ‘साधन कठिन न मन कहुँ टेका।’[1]- साधन कठिन नहीं, मन की दृढ़ता कठिन होनी चाहिये।

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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामचरितमानस, 7/44/3

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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