यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 280

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

पंचम अध्याय


लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।
छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः।।25।।

परमात्मा का साक्षात्कार करके जिनका पाप नष्ट हो गया है, जिनकी दुविधाएँ नष्ट हो गयीं हैं, सम्पूर्ण प्राणियों के हित में जो लगे हुए हैं (प्राप्तिवाले ही ऐसा कर सकते हैं। जो स्वयं गड्ढे में पड़ा है, वह दूसरों को क्या बाहर निकालेगा? इसीलिये करुणा माहपुरुष का स्वाभाविक गुण हो जाता है) तथा ‘यतात्मानः’-जितेन्द्रिय ब्रह्मवेत्ता पुरुष शान्त परब्रह्म को प्राप्त होते हैं। उसी महापुरुष की स्थिति पर पुनः प्रकाश डालते हैं-


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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