यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 279

Prev.png

यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

पंचम अध्याय


योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।24।।

जो अन्तरात्मा में ही सुखवाला, ‘अन्तरारामः’-अन्तरात्मा में ही आरामवाला तथा जो अन्तरात्मा में ही प्रकाशवाला (साक्षात्कारवाला) है, वही योगी ‘ब्रह्मभूतः’-ब्रह्म के साथ एक होकर ‘ब्रह्मनिर्वाणम्’-वाणी से परे ब्रह्म, शाश्वत ब्रह्म को प्राप्त होता है। अर्थात् पहले विकारों (काम-क्रोध) का अन्त, फिर दर्शन, फिर प्रवेश। आगे देखें-


Next.png

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः