यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्यायबाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्। बाहर संसार के विषय-भोगों में अनासक्त पुरुष अन्तरात्मा में स्थित जो सुख है, उस सुख को प्राप्त होता है। वह पुरुष ‘ब्रह्मयोगयुक्तात्मा’-परब्रह्म परमात्मा के साथ मिलन से युक्त आत्मा वाला है इसलिये अक्षय आनन्द का अनुभव करता है, जिस आनन्द का कभी क्षय नहीं होता। इस आनन्द का उपभोग कौन कर सकता है? जो बाहर के विषय-भोगों में अनासक्त है। तो क्या भोग बाधक हैं? भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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