विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायतत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान्। इसके उपरान्त अचूक लक्ष्य पाने वाले, पार्थिव शरीर को रथ बनाने वाले पार्थ ने उन दोनों सेनाओं में स्थित पिता के भाइयों को, पितामहों को, आचार्यों को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को, मित्रों को, श्वसुरों को और सुहृदों को देखा। दोनों सेनाओं में अर्जुन को केवल अपना परिवार, मामा का परिवार, ससुराल का परिवार, सुहृद् और गुरुजन दिखायी पड़े। महाभारत काल की गणना के अनुसार अठारह अक्षौहिणी लगभग चालीस लाख के समकक्ष होता है; किन्तु प्रचलित गणना के अनुसार अठारह अक्षौहिणी साढ़े छः अरब के लगभग होता है, जो आज के विश्व की जनसंख्या के समकक्ष है। इतने मात्र के लिये यदा-कदा विश्व स्तर पर आवास एवं खाद्य-समस्या बन जाती है। इतना बड़ा जन समूह अर्जुन के तीन-चार रिश्तेचारों का परिवार मात्र था। क्या इतना बड़ा भी किसी का परिवार होता है? कदापि नहीं! यह हृदय-देश का चित्रण है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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