विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
ठीक इसी प्रकार साधन का सारा भार साधक के ऊपर ही रहता है; किन्तु वास्तविक साधक तो इष्ट है जो उसके पीछे लगा हुआ है, जो उसका मार्गदर्शन करता है। जब तक इष्ट निर्णय न दें, तब तक आप समझ ही नहीं सकेंगे कि हमसे हुआ क्या? हम प्रकृति में भटक रहे हें या परमात्मा में? इस प्रकार इष्ट के निर्देशन में जो साधक इस आत्मिक पथ पर अग्रसर होता है, अपने को अकर्ता समझकर धारावाहिक कर्म करता है वही बुद्धिमान् है, उसकी जानकारी यथार्थ है, वही योगी है।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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