विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दप्रथम अध्यायसंजय उवाच संजय बोला- निद्राजयी अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हृदय के ज्ञाता श्रीकृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच भीष्म, द्रोण और ‘महीक्षिताम्’- शरीर रूपी पृथ्वी पर अधिकार जमाये हुये सम्पूर्ण राजाओं के बीच उत्तम रथ को खड़ा करके कहा - पार्थ! इन इकट्ठे हुए कौरवों को देख। यहाँ उत्तम रथ सोने-चाँदी का रथ नहीं है। संसार में उत्तम की परिभाषा नश्वर के प्रति अनुकूलता-प्रतिकूलता से की जाती है। यह परिभाषा अपूर्ण है। जो हमारे आत्मा, हमारे स्वरूप का सदैव साथ दे, वही उत्तम है। जिसके पीछे ‘अनुत्तम’-मलिनता न हो।
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ सं. |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज