विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दचतुर्थ अध्याय
क्रमशः तामसी गुण न्यन होने पर राजसी गुणों की प्रधानता तथा सात्विक गुण के स्वल्प संचार के साथ साधक की क्षमता वैश्य श्रेणी की हो जाती है। उस समय वही साधक इन्द्रिय-संयम, आत्मिक सम्पत्ति का संग्रह स्वभावतः करने लगेगा। कर्म करते-करते उसी साधक में सात्विक गुणों का बाहुल्य हो जायेगा, राजसी गुण कम रह जायेंगे, तामसी गुण शान्त रहेंगे। उस समय वही साधक क्षत्रिय श्रेणी में प्रवेश पा लेगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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