विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दतृतीय अध्याय
गुणों का परिवर्तन और क्रम-क्रम से उत्थान वह इष्ट की ही देन मानता है और कर्म होने को भी उन्हीं की देन मानता है। अतः कर्तापन का अहंकार या गुणों में आसक्ति होने की समस्या उसके लिये नहीं रहती, जबकि अनवरत लगा रहता है। इसी पर और साथ ही युद्ध का स्वरूप बताते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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