विषय सूचीयथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दद्वितीय अध्याय
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं जैसे सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में नदियों के जल उसको चलायमान न करते हुए बड़े वेग से उसमें समा जाते हैं, ठीक वैसे ही परमात्मा में स्थित स्थितप्रज्ञ पुरुष में सम्पूर्ण भोग विकार उत्पन्न किये बिना समा जाते हैं। ऐसा पुरुष परमशान्ति को प्राप्त होता है, न कि भोगों को चाहने वाला। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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